Ghazal
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Ghazal

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Ghazal 01 - बुर्दा ए तारीकी थी, उम्रदराज़ से माशूक़
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Ghazal 02 - “माँ” - नहीं दिखती
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Ghazal 03 - मोहब्बत की गलियों को अब अलविदा कहते हैं
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Ghazal 04 - हाँ, अब वो मेरे साथ नहीं है
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Ghazal 05 - अस्पताल ओ दवा कि जिद्दो जहद, अच्छी सज़ा है के
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Ghazal 06 - जिसकी मुहब्बत दुनिया में कम मशहूर है
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Ghazal 07 - उनके हर वार हम, मुस्कुरा कर सह गये
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Ghazal 08 - हिंदू, सीख, ईसाई, मुसलमान है, माफ़ कर दो
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Ghazal 09 - ऐ वक्त, अब मुझे इस क़ैद से आज़ाद कर
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Ghazal 10 - अपने अशकों की क़ीमत करना तुम

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Ghazal 11 - जिसे तजुर्बा ए उरूज नहीं, उसे ज़वाल से कैसा डर
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Ghazal 12 - जो डूबा है अंधेरा, रोशनी लाचार है
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Ghazal 13 - मेरी भीगी शबों कि मीज़ान तू है
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Ghazal 14 - जब से तूने मुझे अपना दीवाना बना रखा है
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Ghazal 15 - माँ तेरा शुक्रिया
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Ghazal 16 - चल आज तुझसे खुल कर वाज़ करता हूँ
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Ghazal 17 - यूँही कोई बेवजह नाराज़ नहीं होता
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Ghazal 18 - हर शाख़ पे हैं काँटे भूखे खून के, तू गुलफाम पैदा कर
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Ghazal 19 - तुझसे हर सवाल का जवाब मांगूंगा,
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Ghazal 20 - उसका इश्क़ कोई और है, तो कैसी नदामत

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Ghazal 21 - माना के मैं तुझसे खालिस यार नहीं करता
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Ghazal 22 - हूँ निर्भीक मैं, डरा नहीं, अब भी बचा उबाल है
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Ghazal 23 - कहाँ कहाँ से उसने उसे, छुआ होगा
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Ghazal 24 - जो दबा है दिलों में, ज़ाहिर कर दो,
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Ghazal 25 - मैंने अपने इश्क़ से, उसके इश्क़ का नाम सुना है
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Ghazal 26 - क़ुबूल है
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Ghazal 27 - किसी को क्यूँ बतलाएँ अपने ग़म
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Ghazal 28 - मुझे कहाँ फ़ुरसत के मैं मौसम सुहाना देखूँ
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Ghazal 29 - एक आशिक़ इश्क़ बेच रहा था मुझे
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Ghazal 30 - मैं बातिल को लरज़ाने वाला, वस्फ़ ए मतीन हूँ

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Ghazal 31 - किसे बताऊँ की इस दिल का हाल क्या है
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Ghazal 32 - डर लगता है
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Ghazal 33 - वक़्तन फ़वक़तन मुझे अपना रब याद आता है
 
Hijr o Visal
1. Burda e Taareeki
बुर्दा ए तारीकी थी, उम्रदराज़ से माशूक़ उसके नूर ए महव ने मुझे, ताबिन्दा कर दिया ||
मेरे महबूब ने, कुछ यूँ इमदाद की मेरी दर्द ए दिल से, दिमाग़ को, ज़िंदा कर दिया ||
जो कफ़स में क़ैद थे, मेरे अरमां अरसे से उसकी ज़ुल्फ़ों के बिखरने ने उन्हें, परिंदा कर दिया ||
ख़्याल ए यार तो, बाईस ए हिम्मत है मग़र उसकी एक निगाह ने मुझे, कुशींदा कर दिया ||
आम हैं क़िस्से, मुहब्बत में नेस्त हो जाने के जी कर उसकी “ना”, मैंने ये क़िस्सा, चुनिंदा कर दिया ||
दो लफ़्ज़ों से उसने, इंसान किया था मुझे उसकी ख़ामोशी ने मुझे वापस, दरिंदा कर दिया ||
कोशिश तो बहुत की थी, उसे भुलाने की “अब्दाल” हर क़ोशिश ए नाकाम ने उसे वापस, ज़िंदा कर दिया ||
2. Haan Ab Woh Mere Saath Nahin Hai
हाँ, अब वो मेरे साथ नहीं है ये तो कोई ग़म की बात नहीं है ||
हाँ, थोड़ा सफ़र मुश्किल होगा ज़ुरूर के अब मेरे हाथ में उसका हाथ नहीं है ||
थोड़ी तन्हाई सताये तो क्या मुआमला याद तो है, सिर्फ़ मुलाक़ात नहीं है ||
मेरा तसव्वुरे “हम”, महफ़ूज़ है अफ़सोस इस धागे में अब उसकी ज़ात नहीं है ||
जज़्बातों को लफ़्ज़ों में पिरो सकूँ मैं ऐसी बनी अभी कोई लोगात नहीं है ||
कलम थामे देख, घूरता है काग़ज़ मुझे तेरे काजल की स्याहि की दवात नहीं है ||
बासुकून गुज़रता है दिन “अब्दाल” अफ़सोस, के क़ब्ज़े में सिर्फ़ रात नहीं है ||
3. Mohabbat Murdabaad
मोहब्बत की गलियों को अब अलविदा कहते हैं ये रास्ता क़ाबिल ए सफ़र नहीं, दास्तान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
बताओ क्यों ज़रूरी है, मोहब्बत जीने के लिए - Q क्या सिर्फ़ ज़िंदा रहना काफी नहीं, पहचान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
तेरा इश्क़, तेरा जुनून, तेरा फितूर, सब ज़ाया है जा पहले शोहरत कमा के आ, इमान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
वो तो कहता था के जी नहीं सकता मेरे बिना मुझे ही मार कर चला गया, जहान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
जो सपने संजोये थे, उन्हें सुला दिए प्यार से खबरदार के अब ख़्वाब देखे, ख्याल-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
मेरा मुस्तक़बिल, उसके तबस्सुम पे क़ायम था कौन अब तेरी राह देखे मलाल-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
उसने आंखों में आंखें डाल, वादे किए थे गहरी नज़रों के हल्के इरादे देखे गुमान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
जो हाथ थामे, दुनिया घूमने की ज़िद थी उसकी वो सारे नज़ारे मैंने यकता देखे तर्जुमान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
एक बार और कोशिश कर, क्या पता इस बार कुछ हो हर किस्सा-ए-इश्क़ अज़ाब है, कोशिश-ए-मोहब्बत मुर्दाबाद
ये रिवायत-ए-ज़माना, ये इश्क़ करना, कोई ज़रूरी नहीं “अब्दाल” अलअल ऐलान कहो और कहलवाओ मोहब्बत मुर्दाबाद मोहब्बत मुर्दाबाद
4. Unke Waar Ham Muskura Kar Seh Gaye
उनके हर वार हम, मुस्कुरा कर सह गये जब भी टूटा दिल, हम हंसते रह गये ॥
क़भी ज़ुबाँ से इकरार मुमकिन ना था जो मिली आँखों से आँखें, सब कह गये ॥
इश्क़ है मग़र, ग़ुरूर भी है ख़ुद पर लफ़्ज़ फ़ना हुए, सिर्फ़ जज़्बात रह गए ॥
काका मौत चखियो, ते ना चखिए इश्क़ इश्क़ के मारे कितनी सहीं बात कह गए ॥
अर्मां सारे, उनके इश्क़ में ज़िंदा रहने के ज़िंदगी थम गयी, अर्मां वहीं रह गए ॥
सुबूत ए सुकून नहीं है हमारा मुस्कुरा देना मेरा सब्र मेरे तमाम मुजाहिदात कह गये॥
क्यों सोचता है इमकान-ए-हाँ के मनाज़िर “अब्दाल” उन्हें कहना था ना, वो सिर्फ़ “ना” कह गये ॥
5. Mere Mehboob ko Dard E Muhabbat Se Dar Lagta Hai
मेरे महबूब को दर्द-ए-मुहब्बत से डर लगता है चाहिए सुकून-ए-इश्क़ मगर शहादत से डर लगता है ।।
वो मेरी हर सुभ की पहली चाय सी है ज़ुरूरत है बड़ी लज़ीज़ मगर उसकी आदत से डर लगता है ।।
उसका ख़ौफ़-ए-हिज्र मुझे बीमार कर देता है वही है इलाज मगर अयादत से डर लगता है ।।
मुझे मंज़ूर है उसका आँखों से मुझे राख कर देना क़यामत है के झगड़े में लताफ़त से डर लगता है ।।
तू नहीं है क़ाबिल-ए-इश्क़, कवानीन-ए-दुनिया के मुताबिक़ वो फिर भी है माशूक़ मेरा, इस इनायत से डर लगता है ।।
नेस्त ही होता है इंसान, जुस्तजू ए इश्क़ में “अब्दाल” कहता हूँ ख़ुद को आशिक़ इसलिए शिकायत से डर लगता है ।।
6. Uske Har Waar, Ham Muskura Seh Gaya
उनके हर वार हम, मुस्कुरा कर सह गये जब भी टूटा दिल, हम हंसते रह गये ॥
क़भी ज़ुबाँ से इकरार मुमकिन ना था जो मिली आँखों से आँखें, सब कह गये ॥
इश्क़ है मग़र, ग़ुरूर भी है ख़ुद पर लफ़्ज़ फ़ना हुए, सिर्फ़ जज़्बात रह गए ॥
काका मौत चखियो, ते ना चखिए इश्क़ इश्क़ के मारे कितनी सहीं बात कह गए ॥
अर्मां सारे, उनके इश्क़ में ज़िंदा रहने के ज़िंदगी थम गयी, अर्मां वहीं रह गए ॥
सुबूत ए सुकून नहीं है हमारा मुस्कुरा देना मेरा सब्र मेरे तमाम मुजाहिदात कह गये॥
क्यों सोचता है इमकान-ए-हाँ के मनाज़िर “अब्दाल” उन्हें कहना था ना, वो सिर्फ़ “ना” कह गये ॥
7. Mujhe Kahan Fursat ke Mausam Suhana Dekhun
शिरकत
मुझे कहाँ फ़ुरसत के मैं मौसम सुहाना देखूँ आपकी नज़रों से निकलूँ तो ज़माना देखूँ ॥
मैं बहुत कुछ था मगर कुछ नहीं आपके लिये अब जब भी आईना देखूँ, एक दीवाना देखूँ ॥
मेरी मुहब्बत तौलने का सिर्फ़ यही तरीक़ा है जो देखूँ आपकी आँखें, अपना पैमाना देखूँ ॥
शमा ने तवाफ ए यार में, ज़िंदगी सर्फ़ कर दी मैं वो जुगनू आशिक़ हूँ के, ख़ुद परवाना देखूँ ॥
आप ही तो ज़रूरी हैं मेरी ज़िंदगी की ख़ातिर फिर क्यूँ मैं आपका असर मुझ पे, क़ातिलाना देखूँ ॥
सच है के आप मेरी हक़ीक़त से कोसो बाहर हैं दिल के रास्ते ख़्वाब में आपका आना जाना देखूँ ॥
आपकी आवाज़ ने किया था मदहोश एक मर्तबा के अब क्या ज़रूरत है के मैं मयखाना देखूँ ॥
चलें हसरतों के बाज़ार में आपको आराम दूँ बाद इश्क़ के “अब्दाल” अपना आबो दाना देखूँ ॥
Awakening
8. Waktan Fawaktan
वक़्तन फ़वक़तन मुझे अपना रब याद आता है ग़र ना हो ज़र ए हयात ख़ुदा कब याद आता है ?
उरूज ए शबाब पे इंसा अपना पिंजरा छोड़ देता है बाद ज़वाल के उसे हिजरत का सबब याद आता है ?
तूने तो अपने क़ानून पे अपना दीन तामीर किया आदम अज़ाब पे अब तुझे आसमानी मज़हब याद आता है ?
मैं उसकी मुहब्बत को इज़्ज़त ए लाइक ना दे सका बाद अज़ विसाल महबूबू के उसका ग़ज़ब याद आता है ?
मैं फ़क़ीर ओ गनी भी मैं सुल्तान ओ मज़लूम भी हूँ तुझे मेरा क़ुव्वत ए दाम देख मेरा नसब याद आता है ?
तू बड़ा ग़ुलाम ए सरकश ए नफ़्स है “अब्दाल” हर दुर्र ए बेअदबी पे तुझे अदब याद आता है ?
~ सैय्यद अब्दाल
9. Kise Bataun Is Dil ka haal kya haal hai
किसे बताऊँ की इस दिल का हाल क्या है ख़ुद ही किया फ़ैसला फिर मलाल क्या है ।।
तरीक़ ए फ़ैसला, बा दिमाग़ रहा, अमली हमेशा जो दाखिल हो दिल, फिर देख जाल क्या है ।।
मुस्तक़बिल तो है, अर्श ए मोअल्ला पे महफ़ूज़ जो है मौजूदा, बता उसपे तेरा आमाल क्या है ।।
कल तक तो तू, उरूज ए ला ज़वाल का हामी था आज निगाह ए तुलु ए शम्स पे, ये ज़वाल क्या है ।।
क्यों नहीं सीखी, ज़माने की बर्बादी से तूने हिकमत अब ना कर शिकायत मुझसे, के ये वबाल क्या है ।।
उसकी तस्वीर बनी है, सीरत ओ आदत ओ अल्फ़ाज़ से जो लग भी जाये उसपे चेहरा, फिर विसाल क्या है ।।
तू कैसे याद करेगा उसे, जिसे कभी भुला ही नहीं फिर ये लम्हा लम्हा, रह रह कर, ख़्याल क्या है ।।
तुझे तो पता था कि, ये सीरात ए दर्द ओ अज़ा है “अब्दाल” फिर इस तोहफ़ा ए इश्क़ पे, नदामत ए सवाल क्या है ।।
10. Maan Nahin Dikhti
“माँ” - नहीं दिखती
मुझे हंसी में अब, खुशी नहीं दिखती मेरी हसरत की खातिर, “माँ” दुखी नहीं दिखती
रोटियाँ तीन, औलाद ओ शौहर में बंट गयीं खाली फाकों के बावजूद, “माँ” भूखी नहीं दिखती
एक रात डर कर ख़्वाब से जागा था मैं उस रात के बाद कभी, “माँ” सोती नहीं दिखती
क़द्र है रब को उसके आंसुओं की तभी मेरी फ़िक्र में ज़ाहिरन ही सहीं, ”माँ” रोती नहीं दिखती
चार दीवारी की झूठी आबरू की खातिर हर क़यामत के बावजूद, "माँ" रूठी नहीं दिखती
वो लम्हा ज़र सा गुज़र, दिल सहम जाता है जब दाख़िल ए घर पे सामने मुझे, ”माँ” बैठी नहीं दिखती
“अगले दो शेर उनके लिए, जिनकी माँ अब इस दुनिया में नहीं है”
मैं फ़तह कर लूँ आसमाँ के सीनों को मगर असल कामयाबी कभी भी, ”माँ” बिना नहीं दिखती
क़यामत की तारीफ़ ये है “अब्दाल” के मैं आवाज़ देता हूँ आदतन मग़र, “माँ” नहीं दिखती
11. Jise Tajurba e Urooj Nahin
जिसे तजुर्बा ए उरूज नहीं, उसे ज़वाल से कैसा डर जिसे ख़ौफ़ ए जवाब नहीं, उसे सवाल से कैसा डर ॥
इंसान जीता है आख़िरत की फ़िक्र में हमेशा जो ना भी मिले दुनिया, तो मलाल से कैसा डर ॥
जिसने शरीअत को ज़ेवर ए तिजारत बना दिया इल्म हो या ना हो, हराम ओ हलाल से कैसा डर ॥
रोज़े क़यामत मुंतज़िर हैं आशिक़ दीदार के है अभी हिजाब ए हिलाल, फ़िलहाल से कैसा डर ॥
तैयारी की हैं दुनिया कि, दग़ाबाज़ी के क़िस्से सुन वफ़ा गर करे ज़माना, तो इस ख़्याल से कैसा डर ॥
क्यों डर डर कर जीता है ज़िंदगी को आख़िर मरना तो सबको है, फिर विसाल से कैसा डर ॥
रब देखता है सिर्फ़ सीरत ए क़ल्ब को “अब्दाल” गो के उसने बनाया, फिर रंग-ए-बिलाल से कैसा डर ॥
Motivational
12. Hindu Muslim Sikh Isaai
हिंदू, सीख, ईसाई, मुसलमान है, माफ़ कर दो जैसा भी है, जो भी है, इंसान है ये, माफ़ कर दो ॥
कई अब भी उससे नाराज़, लोग रेहते हैं दुनिया में फ़िलहाल ठिकाना उसका शमशान है ये, माफ़ कर दो ॥
ज़मीं चिढ़ जाति है उसके कभी भी बरस जाने से सूखों की प्यास बुझाता आसमान है ये, माफ़ कर दो ॥
ज़माने के सामने बेझिझक तमाचा मारा था उसने नामर्द की आन बान शान है ये, माफ़ कर दो ॥
बिना हिमायत बिना पंख ज़रा देर से उड़ा है वो सिर्फ़ हौसलों की उड़ान है ये, माफ़ कर दो ॥
ग़ुस्से में कह दिया था, नीयत नहीं थी लग़ज़िश ए ज़बान है ये, माफ़ कर दो ॥
बिला जुर्म, सज़ा काटी है “अब्दाल” नहीं काम आसान है ये, माफ़ कर दो॥
13. Aey Waqt Mujhe is Qaid se Aazad Kar
वक्त, अब मुझे इस क़ैद से आज़ाद कर मुझे मुझमें मुकम्मल, अकेला ही आबाद कर ॥
कौन सिखाता है इल्म, ये तो अता ए रब है अंदर झांक कर देख, ख़ुद को उस्ताद कर ॥
क्यों बजाएगी दुनिया, ताली तेरी कोशिशों पे जब तक ना हो कामयाब, ख़ुद से ख़ुद को दाद कर ॥
ग़र चाहिए कामयाबी, इश्क़ से इज्तेनाब कर नहीं संभला तो फिर जा, ख़ुद को बर्बाद कर ॥
एक दिन में नहीं होती है फ़तह दुनिया “अब्दाल” एक एक कर जीत, क़तरा क़तरा इमदाद कर ॥
14. Jo Dooba Hai Andhera
जो डूबा है अंधेरा, रोशनी लाचार है सच है कि पता नहीं, यहाँ झूठ का प्रचार है ॥
यहां राजा हैं कुर्सी पर, जिहुज़ुरी शिष्टाचार है ढोंग है प्रणाली का, निंदनीय ये विकार है ॥
राजसत्ता की चर्बी, इक्तेदार के फ़िदाकार है नीयत पे है सवाल, अरे ! ये तो बदकार है ॥
अपराध सिर्फ गरीब का, ये औकात का निखार है अंधा कानून है देखता, यहाँ न्याय एक उपकार है ॥
जो प्रणाली बन गई, चलना उसपे बेकार है हैं दीमक हर नोक पे, बेशर्म इनकी डकार है ॥
ये देश है संविधान का, और किसका अधिकार है उबलता आक्रोश दिलों में, ये आत्म साक्षात्कार है॥
चप्पलें घिस गईं, विनती निराधार है युद्ध हो शांति का, बाक़ी सब इनकार है॥
यलगार हो प्रजा में, यही तंत्र आधार है मिट गए हैं मूक जन, अब किसका इंतज़ार है ॥
जो ना खड़े हुए आज, नहीं फिर नय्या पार है इनक़िलाब की सदा हो बलंद, यही अब उपचार है ॥
कोई नहीं बचाने आएगा, ख़ुददस्ती पे इक़रार है है कृष्ण तेरा सार्थी, तू स्वयं अर्जुन सा इख़्तियार है ॥
ज़ालिम को बताओ, आगे अंधकार है डूबना ही है उसे, नहीं कोई मल्हार है ॥
भारतीय सपूत हैं हम, हम ही में निहित प्रहार है हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, ये भारत का आकार है ॥
हम ही भविष्य हैं भारत के, हम ही से भारत साकार है हम ही से राष्ट्र निर्माण हो, हिन्द एकता आधार है ॥
खिलाफ नाना कुरीत के, तैयार खड़ी कटार है जो भारत बनाम भारतीय हो, भारतीय खड़ा तैयार है ॥

"Patriotism is supporting your country all the time, and your government when it deserves it." - Mark Twain
"The duty of a true patriot is to protect his country from its government." - Thomas Paine
"Patriotism does not oblige us to acquiesce in the destruction of liberty. Patriotism obliges us to question the actions of our government." - Arundhati Roy
"Patriotism means to stand by the country. It does not mean to stand by the president or any other public official." - Theodore Roosevelt
"I criticize America because I love her. I want her to stand as a moral example to the world." - Martin Luther King Jr.
"The highest patriotism is not a blind acceptance of official policy, but a love of one's country deep enough to call her to a higher plain." - George McGovern
15. Har Shaakh
हर शाख़ पे हैं काँटे भूखे खून के, तू गुलफाम पैदा कर जो अबाबील से हो फतेह जंगें, वो दवाम पैदा कर ॥
मिट गई कब्रों में बदशाहों की बुलंद इमारतें लबे मिस्कीन से निकले दुआ, वो नाम पैदा कर ॥
प्यालों में भरकर पिया है ज़माने ने शराब को हमेशा पिलाई जाए आंखों से दिलों को, वो जाम पैदा कर ॥
बहुत हैं ढोंग को वजूद-ऐ-मज़हब की खातिर जो मिटे भूख गरीब की, वो राम पैदा कर ॥
उम्र बीत गयी इबादतों में वो सजदा ना किया मुनव्वर हो मस्जिद-ए-क़ल्ब वो इमाम पैदा कर ॥
ये दुनिया दौड़ है अव्वल रहने की फानी फहरिस्तों में उस्ताद-ए-इंसानियत से हो सबक वो गुलाम पैदा कर ॥
तारीखों की कागजों की ज़मानत है वक़्त को “अब्दाल” नेकियों के मोती कम नहीं चुनने को, नए आयाम पैदा कर ॥