Ghazal 26 - क़ुबूल है
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Ghazal 26 - क़ुबूल है


क़ुबूल है
तुझसे बातें करने की खातिर तुझपे हर पल मरने की खातिर खुद को भुला देने का सौदा क़ुबूल है
तेरी बाहों में बहने की खातिर तेरी यादों में रहने की खातिर खुद से जुदा होने का सौदा क़ुबूल है
तेरी कबूलियत के लम्हों की खातिर तेरी उलझनों और ग़मों की खातिर सब कुछ गँवा देने का सौदा क़ुबूल है
तेरी महफिलों में आने जाने की खातिर तेरी ग़फलतों में कुछ पाने की खातिर इज़्ज़तदार ज़िल्लत का सौदा क़ुबूल है
तेरी आँखों में डूबने की खातिर तेरी रातों से ना ऊबने की खातिर शरीफ मुजरिम बनने का सौदा क़ुबूल है
तेरे हुस्न की झलक की खातिर तेरी ख़्वाबों की झपक की खातिर बिना नींदों के रातों का सौदा क़ुबूल है
तेरी अदाओं की बल की खातिर, तेरी शिफा की हवाओं की खातिर किस्मत से लड़ जाने का सौदा क़ुबूल है
क़ुबूल है गवाहों का निशान क़ुबूल है क़ाज़ी का ऐलान क़ुबूल है हर मिज़ान क़ुबूल है तेरा हर इंसान क़ुबूल है तेरी हर ज़बान क़ुबूल है तेरे साथ हर इमकान क़ुबूल है तेरे साथ हर इम्तेहान क़ुबूल है तेरे ख़्वाबों का हर जहान
बस अब तू कह दे मेरी जान क़ुबूल है, क़ुबूल है, क़ुबूल है