उसका इश्क़ कोई और है, तो कैसी नदामत
मुझे अपनी दिल लगी की, इजाज़त तो है ॥
वो मेरी मौसीकी में शामिल नहीं तो क्या
उसकी यादों में उन बातों की, नफ़ासत तो है ॥
हम कितना माँगें उन्हें, उन्ही से, वो ख़ुद समझ लें
मेरे हर इसरार का मना हो जाना, आफ़त तो है ॥
माना के सख़्त है, उसे किसी और के साथ देखना
उसे देखने का मिलता है मौक़ा मुझे, इनायत तो है ॥
मैं लाख मनाऊँ ख़ुद को, उसका हासिल ना होना
एक मलाल जलता है सुभ ओ शाम, अदावत तो है ॥
वो ना रही, उसकी सिर्फ़ यादें रह गयीं
उसके ख़तों से गुफ़्तगू, तिलावत तो है ॥
चलो जो ग़म था, इन अशआर में लिख दिए
जो ना रो सका मैं मेरे दर्द में हिफ़ाज़त तो है ॥