चल आज तुझसे खुल कर वाज़ करता हूँ
हमारी कलामे-ए-इश्क का आग़ाज़ करता हूँ
वजूद ख़ालिस फ़िक्र है तजस्सुस-ए-हयात की
अपने हंसते हुए आंसूं तेरी वफ़ा पे राज़ करता हूँ
हया हो बाक़ी तो कुछ बेशर्म बात करता हूँ
कुछ दिल की छुपी बातें नियाज़ करता हूँ
हर ख़ाली भीड़ में तुझसे मुलाकात करता हूँ
अपनी हर फ़ैल में, मैं तुझे शाज़ करता हूँ
तेरे नाम हर अपनी तन्हा को रब्त करता हूँ,
हर ग़म को भूल, सफर तुझमें माज़ करता हूँ
जो किया इश्क़ तो अलल ऐलान करता हूँ “अब्दाल”
गर गुनाह ही सही, तेरी ख़ातिर उसपे नाज़ करता हूँ