जो दबा है दिलों में, ज़ाहिर कर दो,
सोया था उजाला, मुझे साहिर कर दो ॥
गुनाहों का देवता कहा है उसने मुझे
ऐसी इनायत हो कि मुझे ताहिर कर दो॥
अक्सरियत मेरी फ़िज़ूलियत से थी वाक़िफ़
शिकस्त-ए-नफ़्स था, वजूद मेरा काहिर कर दो ॥
धुंधली सी है कोयलों की सूफ़ैद, ज़िंदगी मेरी
अपने चश्म-ए-अदब से, मुझे माहिर कर दो ॥
जो वादा है, हूरों और शराब का जन्नत में
यार का हो साथ मेरे, ये वादा मुझपे नाज़िर कर दो॥
बिका हूँ खुद के हाथों, अपनी शहवत के बाज़ार में
दुनिया बीच आख़िरात ख़रीदूँ, ऐसा ताजिर कर दो ॥
कुछ करो न करो, ये करना मेरी प्यास का ज़रूर
तर जाए “अब्दाल”, मश्क़-ए-इश्क़ हाज़िर कर दो ॥