Ghazal 09 - ऐ वक्त, अब मुझे इस क़ैद से आज़ाद कर
9️⃣

Ghazal 09 - ऐ वक्त, अब मुझे इस क़ैद से आज़ाद कर


वक्त, अब मुझे इस क़ैद से आज़ाद कर मुझे मुझमें मुकम्मल, अकेला ही आबाद कर ॥
कौन सिखाता है इल्म, ये तो अता ए रब है अंदर झांक कर देख, ख़ुद को उस्ताद कर ॥
क्यों बजाएगी दुनिया, ताली तेरी कोशिशों पे जब तक ना हो कामयाब, ख़ुद से ख़ुद को दाद कर ॥
ग़र चाहिए कामयाबी, इश्क़ से इज्तेनाब कर नहीं संभला तो फिर जा, ख़ुद को बर्बाद कर ॥
एक दिन में नहीं होती है फ़तह दुनिया “अब्दाल” एक एक कर जीत, क़तरा क़तरा इमदाद कर ॥