ऐ वक्त, अब मुझे इस क़ैद से आज़ाद कर
मुझे मुझमें मुकम्मल, अकेला ही आबाद कर ॥
कौन सिखाता है इल्म, ये तो अता ए रब है
अंदर झांक कर देख, ख़ुद को उस्ताद कर ॥
क्यों बजाएगी दुनिया, ताली तेरी कोशिशों पे
जब तक ना हो कामयाब, ख़ुद से ख़ुद को दाद कर ॥
ग़र चाहिए कामयाबी, इश्क़ से इज्तेनाब कर
नहीं संभला तो फिर जा, ख़ुद को बर्बाद कर ॥
एक दिन में नहीं होती है फ़तह दुनिया “अब्दाल”
एक एक कर जीत, क़तरा क़तरा इमदाद कर ॥