जब से तूने मुझे अपना दीवाना बना रखा है
मैंने दिल को तेरा आस्ताना बना रखा है ॥
किसे नशा तलब है, सुकून ए दिल कि ख़ातिर
मैंने शराब को, तेरे हुस्न का मयखाना बना रखा है ॥
मदहोशी को किसी गुफ़्तगू की अब क्या ज़ुरुरत
तूने तो मुस्कुराना भी क़ातिलाना बना रखा है ॥
एक मर्तबा तुझसे मुलाक़ात हुई थी ख़्वाबों में
मैंने आजतक उसे अपना अफ़साना बना रखा है ॥
दुनिया के लिए मैं एक मोहज्ज़ब शख़्स हूँ लेकिन
उसके इश्क़ में मैंने ख़ुद को मस्ताना बना रखा है ॥
क्या हुआ के नहीं होती मुलाक़ात उससे “अब्दाल”
उसके खुतुत को मैंने अपना नज़राना बना रखा है ॥