Ghazal 05 - अस्पताल ओ दवा कि जिद्दो जहद, अच्छी सज़ा है के
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Ghazal 05 - अस्पताल ओ दवा कि जिद्दो जहद, अच्छी सज़ा है के


अस्पताल ओ दवा कि जिद्दो जहद, अच्छी सज़ा है के इंसान थोड़ा थोड़ा मरता है, थोड़ा थोड़ा जीने के लिये ।।
इन दवाओं ने ढाँचा ए दिल को, जवाँ कर दिया वापस, कोई मलहम ए शिफ़ा भी लगा दे, दर्द ए सीने के लिए ।।
इलाज ए बदन की ख़ातिर, मुकम्मल इलाज दरयाफ़्त है कोई हकीम ए रूह से मिलाओ, शिफ़ा ए कीने के लिए ।।
यूँ तो इनसाँ, काफ़ी जानता है, ज़र्रा ज़र्रा अपने वजूद का मग़र एक हादसा ज़ूरूरी है, असली आईने के लिए ।।
चलो इंतिकाल से तो बच गया, ये जिस्म ए नातवाँ अब कोशिश ए ज़िंदगी करूँ, थोड़ा थोड़ा “जीने" के लिए ।।