Ghazal 04 - हाँ, अब वो मेरे साथ नहीं है
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Ghazal 04 - हाँ, अब वो मेरे साथ नहीं है


हाँ, अब वो मेरे साथ नहीं है ये तो कोई ग़म की बात नहीं है ||
हाँ, थोड़ा सफ़र मुश्किल होगा ज़ुरूर के अब मेरे हाथ में उसका हाथ नहीं है ||
थोड़ी तन्हाई सताये तो क्या मुआमला याद तो है, सिर्फ़ मुलाक़ात नहीं है ||
मेरा तसव्वुरे “हम”, महफ़ूज़ है अफ़सोस इस धागे में अब उसकी ज़ात नहीं है ||
जज़्बातों को लफ़्ज़ों में पिरो सकूँ मैं ऐसी बनी अभी कोई लोगात नहीं है ||
कलम थामे देख, घूरता है काग़ज़ मुझे तेरे काजल की स्याहि की दवात नहीं है ||
बासुकून गुज़रता है दिन “अब्दाल” अफ़सोस, के क़ब्ज़े में सिर्फ़ रात नहीं है ||