किसी को क्यूँ बतलाएँ अपने ग़म
हमहिं हैं मर्ज़ अपने, हमहिं हैं मरहम ॥
हमारा दिल अब दर्द से सूख चुका है
वास्ते ज़िंदगी दरकार बस तेरी शबनम ॥
शांत नहीं ज़िंदगी, ये अंदर की बात है
चलती है एक जंग, एक तलाश बर्हम ॥
ख़ैर ज़िंदा रहना, ज़िंदगी जीना, दो बातें
जो ना जी सकें, फिर भी ज़िंदगी है अहम ॥
तेरे रहने ना रहने से कुछ फ़र्क़ पड़ता है “अब्दाल”
क़ब्रिस्तान देख कर आ, ये तेरा कैसा है वहम ?