Sufi
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Sufi

SUFI SHER
Sufi 1
इस ज़ौक़े इश्क का ये हाल हो जाए, चर्चा मेरे इश्क का लब-ए-चाल हो जाए है बस हसरत यही इस ‘क़ल्ब-नामे’ की अब, धड़कन-ए-दिल-ए-महबूब हो “अल्फ़ाज़-ए-अब्दाल" ताल हो जाए
Sufi 2
जब जब तेरी शौक़ ए दीद में, तौबा की मिक़ात याद आती है ||
हर तसव्वुर ए कुर्ब के बाद अपनी औक़ात याद आती है ||
Sufi 3
ज़ुल्मत को उनके नूर ने काफ़ूर कर दिया
जिस पर पड़ी नज़र उसे भी तूर कर दिया
Sufi 4
तबले की ताल पे या आपकी रूखे अबरार पे मैं रक़्स करता हूँ, हर तस्ववुर ए दीद ए यार पे
Sufi 5
मेरा हज, तस्वव्वुर महबूब पे कामिल हुआ बिना इश्क़, मुसाफ़िर अरब, हिसाब करें
Sufi 6
तड़प कर दिल में, ख्याल बेकरार आया क्यूँ दर्द ए ज़िंदगी, शहे हमसार आया।।
रो कर दुखड़ा जब मैं, दरे महबूब-ए-अबरार आया, मन कुँ तो मौला कहा, मुश्किलकुशा ज़ुल्फ़िकार आया।।
Sufi 7
ग़ौस, क़ुतुब, अब्दाल, कलंदर
सारे मरातिब हक़ हैं
क्या यही करम नहीं
के उसने दोस्त कहा
Sufi 8
ज़िक्र रब से मैं, वसफ़ अहद निकला कुल जो हुआ तामीर, इश्क़ मुहम्मद निकला
Sufi 9
मैं एक तमन्ना ए “कुन” हूँ जो, क़ुदरत की रहमत ए “फ़या कुन” की तलाश में हूँ ॥
Sufi 10
जब दीदार ए काबा हो और नियत ए तवाफ हो वज्द ए कुर्ब ए रब में रक़्स, कुल जमीं मताफ हो

Sufi 11
इश्क़ मुस्तफ़ा ने पुल पार करा दिया कोई मुझे मेरी जन्नत मदीने ले चलो
Sufi 12
मैं आँखें बंद कर, तसव्वुर ए महबूब से पाक हुआ ज़माने ने फ़तवा ए वूज़ू दिया, नींद समझकर ।।
Sufi 13
क़ल्ब ए नाक़िस महव ए ज़ब्त हुआ तेरे तसव्वुर ए अक्स पर
साहिब ए वज्द ने इज़हार ए इश्क़ किया गिर्द तेरे रक़्स कर
SUFI GHAZAL