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Sufi Ghazal 6


जले दिल जहाँ इश्क़ में तेरे, मिले सुकून वस्ल की आग में
मोरी शब हो तेरे बाग़ में हर शाम ढले तेरी राग में
जले दिल जहाँ इश्क़ में तेरे मिले सुकून वस्ल की आग में
ऐसा रंग चढ़े मदीने का हूबहु पुकारे दुनिया मजनू चार सू
वो बिलाल की अहद निदा मदनी ग़ुलामी की आरज़ू
जहन्नुम तो डर है सौदे का कहीं नाराज़ ना हो जाए तू
पशेमानम सा मैं भी लिखूँ नदामत की ख़ुशू ओ खूज़ू
कुछ तड़पूँ मक्के की बात में नज़्र हों आँसू तैबा की नात में
रूह का नहीं वज़ू, नहीं क़ाबिले बरगाह उम्मीद है सिर्फ़ आपकी शफ़ीक़ आदात में
ये लिखा कभी ना सुना पाऊँ क़ब्र को काफ़ी है बाक़सम
गुज़री है चाँद घड़ियाँ आपकी हमदो नात में