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Sufi Ghazal 3


जो मैं ना माँगूँ दुआ, क्या मेरे रब को पता नहीं बा गुनाह चेहरा बेदाग़ है, क्या यही अता नहीं ॥
दे दिया इतना के, औक़ात सोच से है परे माँगना कुछ ख़ुद से ज़र्रा भी, क्या ये खता नहीं ॥
ये इश्क़ बारी, रब से जब हो गयी ख्वाहिशें क्या, ख़ुद मैं, मैं रहता नहीं ॥
मुझे ना छेडो, वह समीन उन अलीम है सब है उसे पता, मैं सिर्फ़ कहता नहीं ॥
हर गुनाह करेगा मेरा रब मुआफ़, है वादा उसका बस कभी ना शिर्क करना, ये बात वो सहता नहीं॥
सत्तर माँओं से ज़्यादा शफ़्क़त का है रब से रिश्ता“अब्दाल” बहक सकता है, मगर ये रिश्ता होता कभी मुनकता नहीं ॥