अपने अंधेरे में, तेरे जलवों का नूर देखता हूँ अंधा हूँ जो अंदर नहीं, कहीं दूर देखता हूँ ।।हुस्न ए ख़ुदा की, कुल तौसीफ है यही शह रग कभी, कभी ताब ए तूर देखता हूँ ।।असले जन्नत क़ुर्ब ए दीद ए महबूब है क्यूँ वो नहर ए जन्नत, वो हूर देखता हूँ ॥