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Sufi Ghazal 1


ये किस बेजा इश्क़-ए-ज़लीलि की बू है जब रक़्स-ए-रूह को दम-ए-अल्लाहू है ।।
उन अब्द, मुझ साक़ी में, सिर्फ़ फ़र्क़ यही मेरी दुनिया, उनकी नस, अल्लाह खू है ।।
फ़िदाका रूहि क़ल्बि सादिक़ निदा मसर्रते रब्बी हबली उम्मती चार सू है ।।
मजाल मुश्किलों की के दम भरे जुर्रत मन कुंतो मौला, मुश्किलकुशा तू है ।।
बहरे हिजाबत तर्बियत तलबि अज़ीम कुल रूहे ग़ुलामी, क़ादरी लहू है ।।
वो ग़रीब नवा बादशाहे हिन्दोस्ताँ इस हुकूमत में मुलाज़मी आरज़ू है ।।
कुल ज़िंदगी सर्फ़ करूँ नात-ए-महबूब में सिर्फ़ तेरा रुख तेरी रज़ा, तू जुस्तजू है ।।