🔟

Ghazal 30 - मैं बातिल को लरज़ाने वाला, वस्फ़ ए मतीन हूँ

मैं बातिल को लरज़ाने वाला, वस्फ़ ए मतीन हूँ बिन असलों के दुश्मन को दहलाने वाला मैं फ़िलिस्तीन हूँ ॰
जिसका छत आसमाँ, आँसूँओं से बुझती मैं प्यास हूँ बच्चों के खून से रंगीन, मैं वही अरब की ज़मीन हूँ (मैं फ़िलिस्तीन हूँ)
अक्सा का वारिस, मैं ही हूँ फ़ौज ए महदी का शहसवार लाशों की दीवार से करता हिफ़ाज़त, पेशंगोई का अमीन हूँ (मैं फ़िलिस्तीन हूँ)
बेबस माँओं की दुआ, बच्चों की चीख़ों की आवाज़ हूँ जो मर कर भी ना ख़त्म हुई शमा ए तौहीद, मैं वो यक़ीन हूँ (मैं फ़िलिस्तीन हूँ)
मलबों में दबी ज़िंदगी, आग के घरों में बासुकून हूँ मैं मुकम्मल जमीं पे, अपनी क़ब्र में मुक़ीम हूँ (मैं फ़िलिस्तीन हूँ)