Ghazal 22 - हूँ निर्भीक मैं, डरा नहीं, अब भी बचा उबाल है
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Ghazal 22 - हूँ निर्भीक मैं, डरा नहीं, अब भी बचा उबाल है


हूँ निर्भीक मैं, डरा नहीं, अब भी बचा उबाल है ए ज़िंदगी, तैयार रह, तुझसे कई सवाल है ॥
कैसा है तेरा दामन, भरा इतना वबाल है तारीख़ों की गवाही है, ज़माना तुझसे विसाल है ॥
आ मैदान-ए-जंग में, बता क्या ख़्याल है फतह तो शर्तें मेरी, हारा तो ज़वाल है ॥
तुझे ना ठुकरा सके, अजब तेरा कमाल है है कल्ब ज़ख़्मी तो क्या, तुझी से तो निहाल है।
मौजूद सिर्फ़ दाग़ नहीं, कुछ तुझमें भी जमाल है ऐ माशूक़, सुन ले ध्यान से, बहुत हुआ मलाल है ॥
छोड़ूँगा तुझे ऐसे, की दुनिया देगी मिसाल है ख़ुदकुशी का नहीं इख़्तियार, नहीं ये हलाल है ॥
वरना तू जो है वो है, मुझमें मेरा हिमाल है यूँ छोटा ना आंकना मुझे, मेरी जुर्रत विशाल है॥
रखता हूँ ज़िंदगी तर्ज़ पे, हर घड़ी इंतेकाल है इनायतें महबूब ए किबरिया, रंग-ए-बिलाल है ॥
साक़ी हूँ मैं कलम का, सैय्यदी जलाल है ये नक्काशियाँ दिलों की, उकेरता “अब्दाल” है ॥