Ghazal 21 - माना के मैं तुझसे खालिस यार नहीं करता
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Ghazal 21 - माना के मैं तुझसे खालिस यार नहीं करता


माना के मैं तुझसे खालिस यार नहीं करता डरता हूँ तुझसे, इसलिए इक़रार नहीं करता ॥
सीरत मेरी जो तू गुमान करना चाहे अच्छा बना ये बुरा मुझे, ज़ार नहीं करता॥
टहलीं हैं मेरी गलियों में जो यादें तेरी जो हो भी जाये बात, इज़हार नहीं करता ॥
रह कर करीब इतना, ये दूरियां कितनी तवील हैं मिले भी तो बिछड़ जाएँगे, इसलिए इसरार नहीं करता ॥
चाहूँ तो तेरी नज़र में, मुकम्मल मजनू बन जाऊँ मैं पड़ूँ तेरे पीछे, ये हिम्मत मेरा मयार नहीं करता॥
दिले अक्स की तस्वीर बेखौफ़ देख “अब्दाल” बिना ख़ुद को जाने, इश्क़ शहरयार नहीं करता॥