Ghazal 15 - माँ तेरा शुक्रिया
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Ghazal 15 - माँ तेरा शुक्रिया

माँ तेरा शुक्रिया
माँ तेरी ही वो काया है, मुझ पर तेरा ही साया है तसव्वुर-ए-मोहब्बत-ए-रब, ज़मीं पर लाने का माँ तेरा शुक्रिया
अपने अंदर संजोय रखा, कोख में नौ माह भिगोय रखा दुनिया में मुझे लाने का माँ तेरा शुक्रिया
जब मैं छोटा बच्चा था, हर तरह से कच्चा था आँचल में मुझे छुपाने का माँ तेरा शुक्रिया।
सारा जग जब सोता था, हर रात मैं रोता था गीला बिस्तर मुझसे चुराने का माँ तेरा शुक्रिया
जब मैं भूख से रोता था, तेरी मौजूदगी का एहसास होता था अपने अमृत से मुझे सींचने का माँ तेरा शुक्रिया
जब कभी चोट लग जाती, दुआएँ तेरे होंठ लग जाती मेरी इबादतों का तरीका बनने का माँ तेरा शुक्रिया
तेरे दुपट्टे का ही साया है हर बुराई से बचाया है अपनी जुबां का मुझे गिरदान देने का माँ तेरा शुक्रिया
न जाने मेरी कितनी खता है, ये तेरी मोहब्बत की अता है क़ाबिल-ए-इंसान मुझे बनाने का माँ तेरा शुक्रिया।
शायद मैं बड़ा हो गया हूँ, सिर्फ़ पैरों पे खड़ा हो गया हूँ खुद पिघलकर मुझे रौशन करने का माँ तेरा शुक्रिया
जब सबका यकीन उठ गया था जब ज़माना मुझसे रूठ गया था यकीन मुझ पर करने का माँ तेरा शुक्रिया
तेरी नवाज़िशों का ही फल है कि आज मेरा कल है हर गुनाह को मेरे ढाँप लेने का माँ तेरा शुक्रिया
जब तक तू साथ रहेगी ज़िंदगी में कुछ बात रहेगी मेरी ज़िंदगी की ज़िंदगी बनने का माँ तेरा शुक्रिया
ये शम्स ओ कमर, ये शजर ओ हज़र, ये दुनिया की बुलंदी, ये तरीके लचर मुझे मेरी औकात में रखने का माँ तेरा शुक्रिया।
किस किस एहसान को याद करूँ, किसको किससे अपवाद करूँ दुनिया में लाया, जीना सिखाया माँ तेरा शुक्रिया
मेरी नींदों का ख़्वाब बनने का मेरे सवालों का जवाब बनने का मेरी रातों की चादर बनने का मेरी बातों की मादर बनने का मेरे वजूद की आफ़ताब बनने का मेरे रातों का महताब बनने का माँ तेरा शुक्रिया