Ghazal 14 - जब से तूने मुझे अपना दीवाना बना रखा है
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Ghazal 14 - जब से तूने मुझे अपना दीवाना बना रखा है


जब से तूने मुझे अपना दीवाना बना रखा है मैंने दिल को तेरा आस्ताना बना रखा है ॥
किसे नशा तलब है, सुकून दिल कि ख़ातिर मैंने शराब को, तेरे हुस्न का मयखाना बना रखा है ॥
मदहोशी को किसी गुफ़्तगू की अब क्या ज़ुरुरत तूने तो मुस्कुराना भी क़ातिलाना बना रखा है ॥
एक मर्तबा तुझसे मुलाक़ात हुई थी ख़्वाबों में मैंने आजतक उसे अपना अफ़साना बना रखा है ॥
दुनिया के लिए मैं एक मोहज्ज़ब शख़्स हूँ लेकिन उसके इश्क़ में मैंने ख़ुद को मस्ताना बना रखा है ॥
क्या हुआ के नहीं होती मुलाक़ात उससे “अब्दाल” उसके खुतुत को मैंने अपना नज़राना बना रखा है ॥