Ghazal 13 - मेरी भीगी शबों कि मीज़ान तू है
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Ghazal 13 - मेरी भीगी शबों कि मीज़ान तू है


मेरी भीगी शबों कि मीज़ान तू है इन खुले लबों की ज़बान तू है ॥
सेहरा ए हयात सूखा है बोझों तले बुझे प्यास बारिश से वो इमकान तू है ॥
खुले जो आंखें सजदे को वो अज़ान तू है दुआऐं जो क़ुबूल हों वो रिज़वान तू है ॥
हर क़यामत को हंसते हुए सहते है हम नाकाम हों कैसे हम जब इम्तेहान तू है ॥
हर इनायत को देखे दुनिया वो शान तू है क़ुर्बान हों जिसपे मेरी जान, वो जान तू है ॥
मैं ठीक था, बदबख़्ती ओ लाचारी में बनाये जो मुझे इंसान, वो शैतान तू है ॥
जिसने ना तौला “अब्दाल” को, वो रय्यान तू है आबाद करना है मुझे जिसके साथ, वो जहान तू है ॥