Ghazal 10 - अपने अशकों की क़ीमत करना तुम
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Ghazal 10 - अपने अशकों की क़ीमत करना तुम


अपने अशकों की क़ीमत करना तुम मेरे मर जाने पे ना मरना तुम ॥
जो साथ था तो क्या वकार था तेरी निगाहों में अब जुदाई पे, बेइज्जत करने से ना डरना तूम ॥
इल्ज़ाम था के मैं तेरी ख़ूबसूरती पे धब्बा हूँ, ठीक अब जो ये कालिख ना, रही सुफ़ैदी में निखरना तुम ॥
मेरी आरज़ू तुम्हारे बदन को ढाँप लेने के तरीक़े की अब जो मैं ढँका हूँ वहन में, रंगीन संवरना तुम ॥
मोम सी कोमल, ये जिस्म मलमलि, अब काम आएगी अब जब ग़ैर मेहरम छुए तो, शेहवत में पिघलना तुम ॥
मेरी रातों की हर तारीकी में सिर्फ़ तुम सुभ रही हो मेरा सूरज गुरूब हुआ, उसकी बाहों में अब ढलना तुम ॥
मैंने इश्क़ ए मादरी सा पाला था तुम्हें अपने दिल में मैं जो जुदा हुआ, उसकी नन्ग़ी निगाहों में पलना तुम ॥
इश्क़ ए वफ़ा ने मुझे बर्बादी का समान बना दिया “अब्दाल” दुआ है के, किसी के धोके का सामान ना बनना तुम॥