Ghazal 08 - हिंदू, सीख, ईसाई, मुसलमान है, माफ़ कर दो
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Ghazal 08 - हिंदू, सीख, ईसाई, मुसलमान है, माफ़ कर दो


हिंदू, सीख, ईसाई, मुसलमान है, माफ़ कर दो जैसा भी है, जो भी है, इंसान है ये, माफ़ कर दो ॥
कई अब भी उससे नाराज़, लोग रेहते हैं दुनिया में फ़िलहाल ठिकाना उसका शमशान है ये, माफ़ कर दो ॥
ज़मीं चिढ़ जाति है उसके कभी भी बरस जाने से सूखों की प्यास बुझाता आसमान है ये, माफ़ कर दो ॥
ज़माने के सामने बेझिझक तमाचा मारा था उसने नामर्द की आन बान शान है ये, माफ़ कर दो ॥
बिना हिमायत बिना पंख ज़रा देर से उड़ा है वो सिर्फ़ हौसलों की उड़ान है ये, माफ़ कर दो ॥
ग़ुस्से में कह दिया था, नीयत नहीं थी लग़ज़िश ए ज़बान है ये, माफ़ कर दो ॥
बिला जुर्म, सज़ा काटी है “अब्दाल” नहीं काम आसान है ये, माफ़ कर दो॥