Ghazal 03 - मोहब्बत की गलियों को अब अलविदा कहते हैं
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Ghazal 03 - मोहब्बत की गलियों को अब अलविदा कहते हैं


मोहब्बत की गलियों को अब अलविदा कहते हैं ये रास्ता क़ाबिल ए सफ़र नहीं, दास्तान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
बताओ क्यों ज़रूरी है, मोहब्बत जीने के लिए - Q क्या सिर्फ़ ज़िंदा रहना काफी नहीं, पहचान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
तेरा इश्क़, तेरा जुनून, तेरा फितूर, सब ज़ाया है जा पहले शोहरत कमा के आ, इमान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
वो तो कहता था के जी नहीं सकता मेरे बिना मुझे ही मार कर चला गया, जहान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
जो सपने संजोये थे, उन्हें सुला दिए प्यार से खबरदार के अब ख़्वाब देखे, ख्याल-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
मेरा मुस्तक़बिल, उसके तबस्सुम पे क़ायम था कौन अब तेरी राह देखे मलाल-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
उसने आंखों में आंखें डाल, वादे किए थे गहरी नज़रों के हल्के इरादे देखे गुमान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
जो हाथ थामे, दुनिया घूमने की ज़िद थी उसकी वो सारे नज़ारे मैंने यकता देखे तर्जुमान-ए मोहब्बत मुर्दाबाद
एक बार और कोशिश कर, क्या पता इस बार कुछ हो हर किस्सा-ए-इश्क़ अज़ाब है, कोशिश-ए-मोहब्बत मुर्दाबाद
ये रिवायत-ए-ज़माना, ये इश्क़ करना, कोई ज़रूरी नहीं “अब्दाल” अलअल ऐलान कहो और कहलवाओ मोहब्बत मुर्दाबाद मोहब्बत मुर्दाबाद